आज का युवा वर्ग, यानी जेनरेशन Z, सिर्फ़ अपने गाने या फैशन से नहीं, बल्कि सड़क पर रैली, ऑनलाइन कैंपेन और स्नैपशॉट वाले एक्टिविज़्म से भी चर्चा में है। सबसे बड़ी बात है‑ वे अपनी बात सीधे सोशल मीडिया पर लिखते हैं, फिर उसे हड़ताल, विरोध या जागरूकता की लहर में बदल देते हैं।
इंस्टाग्राम, टिकटॉक, ट्विटर – इन प्लेटफ़ॉर्म पर एक छोटा वीडियो या पोस्ट हजारों को झकझोर सकता है। जेनरेशन Z अक्सर #ClimateStrike या #EducationForAll जैसे हैशटैग का उपयोग करके अपना संदेश फैलाते हैं। जब कोई वायरल वीडियो बन जाता है, तो सरकार या कंपनियां तुरंत प्रतिक्रिया देना शुरू कर देती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि युवा फॉलोअर्स की संख्या बड़ी होती है और उनका जुड़ाव गहरा होता है।
सड़क पर रैली भी अब पहले जैसी नहीं रही। मिलते‑जुलते कॉलेज वाले अब शांत सिट‑इन या वर्चुअल डेमो की तरफ़ झुकते हैं। एक ही समय में कई शहरों में ऑनलाइन मीटिंग हो जाती है, फिर उसके बाद स्थानीय स्तर पर छोटे‑छोटे रीमिक्स जोड़े जाते हैं। इससे भागीदारी बढ़ती है और सुरक्षा का भी ख़याल रहता है।
उदाहरण के तौर पर, दो साल पहले दिल्ली में टोकियो 2020 ओलंपिक की साक्षरता की समस्या पर छात्रों ने ‘ऑनलाइन पढ़ाई की रैली’ चलाई। उन्होंने Zoom कक्षाओं में घुसकर सवाल पूछे, फिर फिरते हुए वीडियो को YouTube पर पोस्ट किया। इस पहल से शैक्षणिक नीति में बदलाव आया और कई स्कूलों ने ऑनलाइन संसाधन बढ़ाए।
जेनरेशन Z का एक और खास पहलू है‑ फैशन और संगीत को भी माध्यम बनाना। कुछ बैंड अपने गानों में पर्यावरणीय संदेश छुपा देते हैं, और युवा दर्शक उन्हें सुनते‑ही नहीं, बल्कि अपने ग्रुप चैट में शेयर करते हैं। इस तरह संगीत भी एक ‘प्रदर्शन’ बन जाता है।
तो, अगर आप इस नई लहर को समझना चाहते हैं, तो बस देखिए कि इन युवा आवाज़ों के पीछे कौन‑से मुद्दे हैं: जलवायु परिवर्तन, शिक्षा का अधिकार, लैंगिक समानता, या फिर डिजिटल गोपनीयता। इन मुद्दों को लेकर वे न सिर्फ़ बैनर उठाते हैं, बल्कि प्रतिदिन अपने मोबाइल स्क्रीन पर भी लड़ते हैं।
आख़िरकार, जेनरेशन Z का प्रदर्शन एक ही रूप नहीं, बल्कि कई रूपों का मिश्रण है। उनका तरीका तेज़, लचीलापन वाला और लोगों को जोड़े रखने वाला है। आप चाहे एक छात्र हों, एक पब्लिक फ़िगर या सिर्फ़ एक जिज्ञासु पाठक – इस टैग पेज के माध्यम से आप जेनरेशन Z के प्रदर्शन की हर नई कहानी से अपडेट रह सकते हैं।
नेपाल में जेन Z के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच पीएम केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दिया और कुलमान घिसिंग अंतरिम प्रधानमंत्री के लिए सबसे मजबूत दावेदार बनकर उभरे। सोशल मीडिया बैन से शुरू हुआ आंदोलन भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ मोर्चे में बदल गया। घिसिंग को युवाओं का भरोसा इसलिए भी है क्योंकि उन्होंने बिजली संकट खत्म कर दिखाया।
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