नेपाल राजनीतिक संकट: कारण, असर और आगे क्या?

आपने हाल ही में टीवी या सोशल मीडिया पर नेपाल की खबरें देखी होंगी – कई सरकारें की कमी, पार्टी‑पार्टी झड़प, और अक्सर विरोध प्रदर्शन। यही सब एक बड़े राजनीतिक संकट की निशानी है। इस लेख में हम सीधे बात करेंगे कि ये संकट क्यों आया, कौन‑कौन से हिस्से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं, और आगे क्या हो सकता है।

संकट के मुख्य कारण

पहला कारण है सत्ता का अंधराष्ट्र। 2020 के बाद कई गठबंधनों ने क़दम मिलाया, लेकिन किसी भी गठबंधन को स्थिर रखने के लिए भरोसे‑मंद नेतृत्व नहीं मिला। कांग्रेस, कम्युनिस्ट (उज्याल) और कम्युनिस्ट (मैक) की बार‑बार बदलती गठजोड़ें जनता में भ्रम पैदा करती रही।

दूसरा कारण है संवैधानिक असंगतियां। जब संविधान का नया संशोधन होने वाला था, तो विपक्ष ने वोट देने से इनकार कर दिया। संसद में औपचारिक रूप से बहुमत नहीं बना, जिससे सरकार को भरोसे‑मंद कानून बनाने में दिक्कत हुई।

तीसरा बड़ा पहलू है आंतरिक पार्टी विवाद। प्रमुख दलों के अंदर ही नेता‑पिता के बीच ताकत के संघर्ष चलते रहे। यह अक्सर गैस्ट्रोनॉमी से भी जुड़ा रहा – कौन किस क्षेत्र में वोट देख रहा है, किस नेता का समर्थन किस जाति या समुदाय से है।

इन सब कारणों का मिलाजुला असर ही आज के राजनीतिक झटके को बनाता है। आप चाहे तो इसे एक झंझट मान सकते हैं, पर असल में इसमें कई सामाजिक बुनियादी सवाल छिपे हैं।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

जब सरकारें बदलती रहती हैं, तो आर्थिक नीतियों में भी गिरावट आती है। विदेशी निवेशकों को स्थिरता चाहिए, लेकिन निरंतर गठबंधन टूटने से उनका भरोसा कम हो जाता है। इसका सीधा असर बैंकिंग सेक्टर, इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट और पर्यटन पर पड़ता है – जो नेपाल की मुख्य आय के स्रोत हैं।

सामाजिक स्तर पर, युवा वर्ग का निराशा बढ़ रहा है। कई स्नातक अब विदेश में नौकरी की तलाश कर रहे हैं, क्योंकि देश में रोजगार के अवसर सीमित हैं। साथ ही, किसान भी अपनी फ़सल के लिए सरकारी सब्सिडी या जलसंधारण योजना नहीं मिल पा रही है, जिससे वे प्रत्यक्ष रूप से संकट से जूझते दिखते हैं।

सुरक्षा रुख में भी अड़चन है। जब राजनैतिक स्थिरता नहीं होती, तो सीमा पर रखी सुरक्षा बलों को किन्हीं बिन‑सिर पर काम करना पड़ता है। इससे पड़ोसी देशों के साथ समझौते में देर हो सकती है, और शांति प्रक्रिया पर असर पड़ता है।

तो अब सवाल उठता है – इस संकट को कैसे हल किया जाए? अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि राजनीतिक आत्मविश्वास और संवाद ही समाधान है। सभी दलों को एक बार फिर से संधि पर बैठना चाहिए, स्पष्ट बहुमत बनाकर विशिष्ट नीति‑एजेंडा तय करना चाहिए। साथ ही, जनता को भी यह महसूस होना चाहिए कि उनका वोट सिर्फ चुनावी जीत नहीं, बल्कि स्थायी नीति बनाता है।

यदि आप नेपाल की स्थिति पर नज़र रखें, तो रोज़मर्रा के समाचार, सोशल मीडिया की चर्चा, और सरकारी बयानों को देखना फायदेमंद रहेगा। यह आपको कब नया गठबंधन बनेगा या कब नीति में बदलाव आएगा, इसकी झलक देगा।

संक्षेप में, नेपाल का राजनीतिक संकट कई कारणों से जटिल है, पर सही संवाद और स्थिर नेतृत्व से इसे सुधारा जा सकता है। आशा है यह लेख आपको साफ़ तस्वीर देता है और आगे देखी जाने वाली हर खबर को समझने में मदद करेगा।

कुलमान घिसिंग नेपाल के अंतरिम पीएम की दौड़ में सबसे आगे: जेन Z क्यों टेक्नोक्रैट को चुन रही है
सित॰ 12, 2025

कुलमान घिसिंग नेपाल के अंतरिम पीएम की दौड़ में सबसे आगे: जेन Z क्यों टेक्नोक्रैट को चुन रही है

अभिनव बहुगुण
द्वारा अभिनव बहुगुण

नेपाल में जेन Z के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच पीएम केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दिया और कुलमान घिसिंग अंतरिम प्रधानमंत्री के लिए सबसे मजबूत दावेदार बनकर उभरे। सोशल मीडिया बैन से शुरू हुआ आंदोलन भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ मोर्चे में बदल गया। घिसिंग को युवाओं का भरोसा इसलिए भी है क्योंकि उन्होंने बिजली संकट खत्म कर दिखाया।

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